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य आन॑यत्परा॒वतः॒ सुनी॑ती तु॒र्वशं॒ यदु॑म्। इन्द्रः॒ स नो॒ युवा॒ सखा॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ānayat parāvataḥ sunītī turvaśaṁ yadum | indraḥ sa no yuvā sakhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। आ। अन॑यत्। प॒रा॒ऽवतः॑। सुऽनी॑ती। तु॒र्वश॑म्। यदु॑म्। इन्द्रः॑। सः। नः॒। युवा॑। सखा॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब तेंतीस ऋचावाले पैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (युवा) शरीर और आत्मा के बल से युक्त (इन्द्रः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का देनेवाला राजा (सुनीती) सुन्दर न्याय से (परावतः) दूर देश से भी (तुर्वशम्) हिंसकों को वश में करनेवाले (यदुम्) यत्न करते हुए मनुष्य को (आ) सब प्रकार से (अनयत्) प्राप्त करावे (सः) वह (नः) हम लोगों का (सखा) मित्र हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम उस राजा के साथ मैत्री करो, जो सत्य न्याय से दूर देश में स्थित भी विद्या, विनय और परोपकार में कुशल, श्रेष्ठ मनुष्य को सुनकर अपने समीप लाता है, उस राजा के साथ मित्र हुए वर्त्ताव करो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो युवेन्द्रः सुनीती परावतस्तुर्वशं यदुमाऽनयत् स नः सखा भवतु ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (आ) समन्तात् (अनयत्) (परावतः) दूरदेशादपि (सुनीती) शोभनेन न्यायेन (तुर्वशम्) हिंसकानां वशकरम् (यदुम्) प्रयतमानं नरम् (इन्द्रः) सर्वैश्वर्यप्रदो राजा (सः) (नः) अस्माकम् (युवा) शरीरात्मबलयुक्तः (सखा) मित्रम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं तेन राज्ञा सह मैत्रीं कुरुत यस्सत्यन्यायेन दूरदेशस्थमपि विद्याविनयपरोपकारकुशलमाप्तं नरं श्रुत्वा स्वसमीपमानयति तेन राज्ञा सह सुहृदः सन्तो वर्त्तध्वम् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजनीती, धन जिंकणारे, मैत्री, वेद जाणणारे, ऐश्वर्याने युक्त, दाता, कारागीर व स्वामी यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही त्या राजाबरोबर मैत्री करा जो सत्य न्यायाने दूर देशात असलेल्या विद्या, विनय व परोपकार करण्यात कुशल असलेल्या श्रेष्ठ माणसाची कीर्ती ऐकून आपल्याजवळ आणतो, त्या राजाबरोबर मित्र बनून वागा. ॥ १ ॥